प्राचीन हैं लखनऊ के लेटे हुए हनुमान जी का इतिहास
लखनऊ के पंचवटी घाट पर लेटे हुए हनुमान जी के मंदिर की प्राचीनता को सिद्ध करते हुए मंदिर के गर्भ गृह विस्तार में खुदाई में अत्यंत प्राचीन ईंट के अवशेष प्राप्त हुए है ।
कहा जाता है की मंदिर में स्थापित श्री लेटे हुए हनुमान जी का विग्रह एक शिला के रूप में है जो लगभग २५० वर्ष से भी अधिक पूर्व में माँ गोमती के तट के दिशा मोड़ने के कारण बालू से प्रकट हुआ था | इस विग्रह को सीधा खड़ा करने के काफी प्रयास किये गए परन्तु शिला के रूप में ये स्वयं भू स्थापित ही रहे जिनको फिर वही उसी रूप में स्थापित कर दिया गया | प्रचलित क्षेत्रीय लोक कथाओं एवं मिले जुले साक्ष्य ये साबित करते है कि इस प्राचीन हनुमान मंदिर का जीर्णोद्धार सन 1860 से 1875 के मध्य एक सिद्ध संत द्वारा किया गया था, जो नित्य गोमती स्नान-ध्यान हेतु आते थे। उसके बाद इस मंदिर का जीर्णोधार सन 1925 के लगभग पंचवटी घाट के संत मौनीबाबा के द्वारा किया गया जिसकी तत्कालीन ईंट भी खुदाई से प्राप्त हुई हैं।
लेटे हुए हनुमान जी मंदिर के तृतीय जीर्णोधार, घाट का विस्तार एवं शिवालय की स्थापना 1942 में मौनीबाबा के शिष्य भक्त गोपाली दास के द्वारा हुई थी जो नित्य बाबा के दर्शन हेतु आते थे।
सन 1961 की बाढ़ के बाद सन 1971 के लगभग बंधे का निर्माण हुआ जिसके बाद से इस मंदिर में आने जाने का रास्ता न होने के कारण लेटे हुए हनुमान जी मंदिर में दर्शनार्थी आना बंद हो गए और बाबा हनुमान जी आठ फुट गुणे दस फुट की कोठरी में बंद हो गए, न ही कोई पूजन न ही कोई भोग प्रसाद, हनुमान जी बाबा उस कोठारी में एकांतवास में हो गए । समय-समय पर आयी माँ गोमती की बाढ़ ने मंदिर को और जीर्ण-शीर्ण कर दिया लगभग सभी विग्रह देखभाल के अभाव में जीर्ण शीर्ण होने लगे । सन 2001 में इसी मंदिर के बारे में स्वर्गीय पद्मभूषण श्री योगेश प्रवीण के कहने पर पत्रकार श्री ऋद्धि किशोर गौड़ द्वारा मंदिर के विषय मे समाचार पत्र में प्रकाशित किया।
सन 2006 में मंदिर के अस्तित्व के बारे में एक स्थानीय ब्राह्मण द्वारा तत्कालीन युवा हनुमान भक्त डॉ विवेक तांगड़ी एवं श्री पंकज सिंह भदौरिया को पता चला । मंदिर में बाबा के दर्शन करने के बाद इन दोनों हनुमान भक्त ने मंदिर के जीर्णोद्धार का बीड़ा उठाया और बाबा जो एकांतवास में थे वे जाग्रत होकर मंदिर के पुनः जीर्णोधार के लिए आशीर्वाद प्रदान किये ।
डॉ तांगड़ी द्वारा जब लेटे हुए हनुमान जी मंदिर के विषय मे हनुमान भक्त स्व0 श्री सुनील गोम्बर को बताया गया तो वे निस्वार्थ भाव से वर्ष 2008 से मंदिर की सेवा में जुट गए। 2008 में ही मंदिर के ट्रस्ट की स्थापना हुई जिसमें स्व0 श्री सुनील गोम्बर को अध्यक्ष, श्री अखिलेश कुमार सचिव, श्री सुरेंद्र सूदन कोषाध्यक्ष, डॉ विवेक तांगड़ी एवं डॉ पंकज सिंह भदौरिया अपनी व्यापारिक व्यस्ततओं के कारण कोई पद न लेते हुए ट्रस्ट के ट्रस्टी नामित हुए । मंदिर में अनवरत पूजन और श्रृंगार की परंपरा चालू हो गयी जो कि अभी तक चल रही है । वर्ष 2021 के अप्रेल माह में स्व0 श्री सुनील गोम्बर का देहांत हो गया तत्पश्चात पुनः मंदिर की ट्रस्ट का विधिक पुनर्गठन किया गया जिसमें डॉ विवेक तांगड़ी अध्यक्ष, श्री पंकज सिंह भदौरिया सचिव एवं श्री ऋद्धि किशोर गौड़ कोषाध्यक्ष चुने गए ।
वर्ष 2021 में ही शुरू हुआ मंदिर का भव्य जीर्णोधार जो कि अभी वर्तमान में भव्य रूप से चल रहा है । ट्रस्ट के पुनर्गठन के बाद मंदिर में अन्नपूर्णा सेवा, गौ सेवा, श्री हनुमत पाठशाला, यज्ञ सेवा एवं अन्य सामाजिक और धार्मिक सेवाएं भी प्रारंभ हो चुकी है जो कि अनवरत अगस्त 2021 से चल रही है ।
मंदिर परिसर में युवाओं को रोजगार प्रदान करने के लिए मंदिर के सेवादास डॉ विवेक तांगड़ी एवं सचिव डॉ पंकज सिंह भदौरिया जी के नेतृत्व में विशेष प्रकल्प बना हुआ है जिसके अंतर्गत 10 जुलाई 2024 तक 72 युवाओं को विभिन्न स्थानों पर रोजगार प्रदान किया जा चूका है | ये मंदिर देवदर्शन के साथ-साथ सामाजिक परिवर्तन स्थल के रूप में लखनऊ ही नहीं अपितु आस पास के कई जिलों से आये हुए भक्तों पर अपनी भरपूर ऊर्जा से आकर्षित कर कृपा कर रहा है |
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